गांधीनगर से पूर्व IAS प्रदीप शर्मा गिरफ्तार, कच्छ में अवैध रूप से जमीन आवंटन का मामला
अहेवाल : दिलीप पटेल गुजरात सीआईडी ने रविवार को पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को गिरफ्तार किया है। शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने कच्छ जिले के कलेक्टर के रूप में अपने कार्यकाल (2004-05) के दौरान कम कीमत पर अवैध रूप से भूमि आवंटित किया, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। पुलिस उपाधीक्षक (सीआईडी अपराध) वीके नाई ने बताया कि कच्छ जिले के भुज में सीआईडी (अपराध) सीमा क्षेत्र पुलिस थाने में 1984 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी शर्मा और दो अन्य के खिलाफ शनिवार को प्राथमिकी दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि शर्मा को रविवार की सुबह गांधीनगर से हिरासत में लिया गया और रविवार की सुबह गिरफ्तार किया गया। शर्मा ने अतीत में दावा किया था कि गुजरात में तत्कालीन नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें प्रताड़ित किया। कच्छ जिले के गांधीधाम तालुका के चुडवा गांव में भूमि आवंटन के इस नए मामले में उनके खिलाफ आपराधिक विश्वासघात और आपराधिक साजिश के आरोपों में मामला दर्ज किया गया है। प्राथमिकी में कहा गया है कि उन्होंने कलेक्टर के रूप में अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके मूल्यांकन निर्धारित करने के सरकार के प्रावधानों की अनदेखी की और कथित तौर पर बहुत कम कीमत पर सरकारी भूमि आवंटित की, जिससे राज्य के खजाने को नुकसान हुआ। भूमि आवंटन का यह मामला नवंबर 2004 और मई 2005 के बीच का है। इसमें कहा गया है कि शर्मा ने कथित तौर पर तत्कालीन रेजिडेंट डिप्टी कलेक्टर और भुज टाउन प्लेनर के साथ आपराधिक साजिश रची, जिन्हें भी मामले में आरोपी के रूप में नामित किया गया है। वर्ष 2003 से 2006 के बीच कच्छ के कलेक्टर रहे शर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले दर्ज हैं और उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में भी गिरफ्तार किया गया था जिसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रहा है। सितंबर 2014 में शर्मा को राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने एक व्यापारिक समूह से 29 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। शिकायत के मुताबिक, उन्होंने 2004 में एक समूह को मौजूदा बाजार दर के 25 फीसदी पर एक जमीन आवंटित की थी, जिससे राज्य के खजाने को लगभग 1.2 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। बदले में कंपनी ने कथित तौर पर शर्मा की पत्नी को अपनी एक सहायक कंपनी में बिना कोई निवेश किए 30 फीसदी की हिस्सेदारी दी और उन्हें 29.5 लाख रुपये का लाभ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले उनके खिलाफ दर्ज मामलों की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के उनके आवेदन को खारिज कर दिया था।